CHANAP BUGYAL JOSHIMATH

चनाप बुग्याल


मुख्य पड़ाव चनाप बुग्यालः-

थैंग से चनाप बुग्याल जाते समय इन पडावों से होकर गुजरना पड़ता हैः-

धौड़ नागदेवता मन्दिरः-

केदारखण्ड के सम्पूर्ण क्षेत्र में कश्यप पुत्रों का अधिपत्य था। यहीं देवासुर संग्राम हुआ। देवों का प्रभाव बढ़ा चक्र का शासन सुदृढ़ हुआ। देवों के वर्चस्व में जब कमी आई दो नागों का उत्थान हुआ। शंकर और दुर्घा रंगमंच पर आये। चक्र का स्थान त्रिशूल ने ले लिया। कमल के स्थान पर नाग फुफकारने लगे। ऐसा लगता है कि नाग शेष थे। या नागों ने शिव को आत्मसात कर लिया होगा। शिवलिंग को चारों और से नागों ने घेर लिया ऐसी मूर्तिया पैनखण्डा में देखी जा सकती है। महाभारत में शेषनाग का हिमालय में तपस्या हेतु आने का उल्लेख है। गढ़वाल में नागों के कई महत्वपूर्ण स्थल है। चमोली में नागपूर और उर्गम घाटियाँ की पट्टी नागों के नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रसिद्ध पट्टी में थैंग गाँव भी है। थैंग गाँव से चनाप घाटी के रास्ते में 2 किमी0 की दूरी पर राजा थासिंह के कुलदेव शेषनाग जी का मन्दिर है, जो कि इस घाटी के नागभूमि होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसे थैंग गाँववासी धौड़ भी कहते है।  वैसे धौड का अर्थ गुफा से लगाया जाता है। इस गुफा में नाग देवता का वास माना जाता है। अर्थात यहाँ भूमियाल और भगवान विष्णु दोनों का स्थान माना जाता है। यहाँ पर नाग कुण्ड है। जनश्रुति है कि जब कभी भी इस कुण्ड में कोई भी अशुद्ध चीज इसमें जाती है या कोई व्यक्ति अगर जूठे हाथ लेकर इसके पास चले जाय तो इधर साँप आ जाते है और कहा जाता है कि तत्पश्चात तीव्र वर्षा भी होती है। इसलिए इस स्थान पर साफ सफाई व इसकी पवित्रता का विशेष महत्व माना जाता है। इसलिए थैंग गाँववासी इस स्थान की पवित्रता को बनाये रखने के लिए समय-समय पर इस कुण्ड में गौमूत्र व दूध डालते है।

पिलपर खर्क- 

धोड़ नागदेवता मन्दिर से आगे चलने पर 2 किमी0 दूरी पार करके पिलपर खर्क आता है। खर्क बुग्याल का ही गढवाली पर्यायवाची शब्द है। थैंग गाँव से चलने के बाद हम पिलपर खर्क पहुँचते है जो कि प्राकृति की सुरम्य वादियों के बीच स्थिति सुन्दर स्थल है। जो कि समुद्रतल से 2600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। पिलपर एक बहुत ही सुन्दर स्थान है। यहाँ पर पहुँचने के बाद आपको आमने सामने इधर-उधर कई मनोरम दृश्य दिखने शुरु हो जाते है। इस स्थान से आपको विश्वप्रसिद्ध हिमक्रीडा स्थल औली, हाथी पर्वत, कागभुशन्डी, नन्दादेवी पर्वत, गौरसों बुग्याल, क्वारी पास, सहित कई रमणीक स्थल देखने को मिलते है। 

वेदवा खर्क-

पिलपर खर्क के बाद हम वेदवा खर्क पहुँचते है जो कि समतल भू-भाग में बसा हिमाच्छादित व मखमली घासों वाला सुन्दर बुग्याल है। यह स्थल समुद्र तल से 3150 मी0 की ऊँचाई पर स्थित है। जहाँ से हम रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, वंशी नारायण व लगभग विश्व प्रसिद्ध हिमक्रीडा स्थल औली के समानन्तर ऊँचाई वाले सभी रमणीक स्थलों का नजारा देखने को मिलता है। यहाँ से आप लगभग पूरे पैनखण्डा क्षेत्र का नजारा देखा जा सकता है।

चनाप बुग्याल इतिहास

चनाप बुग्याल सोना शिखर थैंग एक सुंदर फूलों की घाटी है। इस घाटी की जानकारी सर्वप्रथम चाई और थैंग के लोगों को थी, क्योंकि यह घाटी मुख्य मार्ग से दूर और सुविधाओं के अभाव के कारण इस घाटी को वह स्थान नही मिला जो एक सुंदर घाटी को मिलना चाहिए। लेकिन समय के साथ प्रकृति ने भी अपने आप को इंसाफ दिलवाया और पता चला कि यह घाटी हिमालय के सबसे खूबसूरत बुग्यालों में से एक है। शासन प्रशासन स्तर पर इस घाटी का विकास सन 1987 ई0 से शुरू हुआ। सन 1988 ई0 से पर्यटकों का यहाँ आगमन शुरू हो गया। वर्तमान समय में सबसे ज्यादा बंगाली पर्यटक ही इस घाटी में आते है।
         इस घाटी में कई अन्य दर्शनीय स्थल भी मौजूद है।सोना शिखर, फुलाना, जग्भूत धारा, मस्कवस्याणी इत्यादि अनेक पर्यटक स्थल पर्यटकों के लिए स्वर्ग है।बंगाली पर्यटक यहाँ प्रतिवर्ष जून से अक्टूबर तक आते रहते है। 
       चनाप घाटी फूलों के एक रहस्यमयी घाटी है। इस घाटी के संदर्भ में दो बातें है जिनका की प्रमाण है। एक वैज्ञानिक और दूसरा धार्मिक। वैज्ञानिक रहस्य के सम्बंध में गूगल पर एक आंकड़ा जिसमें कहा गया है कि एक सर्वे के अनुसार इस घाटी में फूलों की 500 से भी अधिक प्रजातियां पाई जाती है। इसके अलावा विशिष्ट धार्मिक महत्व भी है, पुराणों में कहा गया है कि जितनी खुसबू चनाप घाटी के फूलो में है उतनी खुसबू गन्धमाधन पर्वत और बद्रीवन के फूलों में नही पाई जाती है- इसमे राजा विशाला की कथा है कि एक बार हनुमान चट्टी में बद्रीपूरी के राजा जिनके नाम से बद्रीनाथ जी बद्रीविशाल भी कहलाये ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया इस यज्ञ में इन्होंने यहाँ की जडी बूटियों और पुष्पों की आहुति दी थी। 


कहाँ है चनाप बुग्याल:- काफी भू भाग पर फैले मखमली घास के मैदान को बुग्याल कहते है। उत्तराखंड के चमोली जनपद के जोशीमठ ब्लॉक में स्थित थैंग गावँ के हिमशिखरों के बीच स्थित है। इसकी दूरी मारवाड़ी पुल बसे 18 किमी है। थैंग गावँ से चनाप बुग्याल 08 किमी0 की दूरी में स्थित है। यह समुद्रतल से 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से एक रास्ता बद्रीनाथ जी को जाता है, जिसका अंतिम पड़ाव नीलकण्ठ है। यहाँ से कागभुशुण्डि, रुद्रनाथ, वंशी नारायण, नन्दीकुंड, नन्दादेवी पर्वत, गंधमाधन पर्वत, औली क्वारी पास बुग्याल का नजारा भी दिखाई देता है। 

चनण्या घट्ट:- चनाप बुग्याल से आगे चलकर सोना शिखर मार्ग पर चनण्या घट्ट आता है। जो चनाप बुग्याल से 02 किमी0 की दूरी पर है। ऐसी मान्यता है कि यह घट्ट वन देवी देवताओं द्वारा निर्मित है। 
जग्भूत धारा:- यह चनाप बुग्याल से सीधे सामने दिखाई पड़ता है। यह काफी सुंदर झरना है। 


मसक्वस्याणी:- चनण्या घट्ट जे पास ही यह छोटा सा बुग्याल है। इस घाटी का नाम मसक्वस्याणी क्यों पड़ा इसका वर्णन इस प्रकार है। कहा जाता है श्रीनगर राजा के घर मे एक कन्या पैदा हुई, राजा ने अपनी इस कन्या का नाम मसक्वस्याणी रखा। कहा जाता है कि यह कन्या बचपन से ही हटी स्वभाव की थी और माता सुनन्दा की भक्ति में लीन रहती थी। माता सुनन्दा के दर्शन करने है कि बात सुनकर राजा आश्चर्यचकित रह गये। राजा ने पूछा ये स्थान कहाँ है तो पुत्री ने बिल्कुल मधुर स्वर में कहा गंधमाधन पर्वत व बद्रीवन के दांयी और स्थित है मुझे अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए माता सुनन्दा के दर्शन करना अति आवश्यक है क्योंकि मेरा जन्म ही इसीलिए हुआ है। इसके बाद उसने श्रीनगर से चलना प्रारम्भ किया और चलते चलते वह सीधे कल्पेश्वर के समीप पहुंची इस स्थान को जुनेगढ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद फ्यूला नारायण होते हुए यहां चनाप बुग्याल पहुंची और इस घाटी में पहुंचकर माता सुनन्दा की भक्ति में लीन हो गयी। वर्तमान समय मे उस स्थान पर छोटा सा मन्दिर है और उसी के आस पास फूलवाडी है। इस स्थान को मसक्वस्याणी के नाम से जाना जाता है, जो लोग शक्ति के उपासक है उनके लिए यह स्थान ध्यान हेतु सर्वदा उपयुक्त है। 

फूलाना:- जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि जहाँ फूलों की बहुलता पाई जाती है, या जो घाटी केवल फूलों के लिए ही जानी जाती है तो उस घाटी को फूलाना कहा जाता है। 


सोना शिखर का इतिहास:- 

चनाप बुग्याल से ठीक सामने पहाड़ी व फूलाना टॉप से होते हुए सोना शिखर पहुंचते है। चनाप बुग्याल का बाद 08 किमी की दूरी पर सोना शिखर आता है। इस घाटी का वर्णन पुराणों में इस प्रकार कहा जाता है कि माता सुनन्दा के नाम पर इस घाटी का नाम सोना शिखर पड़ा। माता सुनन्दा बचपन से ही भगवान शंकर की अनन्य भक्त थी, तथा भगवान शंकर को पति रूप में पाना चाहती थी, एक बार भगवान शंकर उसकी परीक्षा लेने के लिए उसके घर पहुँचे और उसको उपहार स्वरूप एक हीरा प्रदान किया और कहा कि आपको 3 दिन के लिए पत्नी बनाना चाहता हूँ। भगवान शंकर ने उसकी कठिन परीक्षा लेने के लिए एक मायाबी रचना रची उन्होंने अपने आप को हीरा सहित अग्नि में जला दिया, उसके बाद माता सुनन्दा काफी व्याकुल हो गयी तथा अपने आराध्य देव के वियोग में उसके बाद उसने भी अपने आप को उस अग्नि में भस्म करना चाहा तो जैसे ही उसने अग्नि में प्रवेश किया वैसे ही भगवान शंकर प्रकट हो गए। भगवान माता सुनन्दा की भक्ति देख प्रसन्न हो गए। भगवान शंकर ने कहा कि तुम सोना शिखर जाओ और वही निवास करो और कहा कि जब भी तुम हमारा स्मरण करोगी तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगा, भगवान शंकर की आज्ञा पाकर माता सुनन्दा सोना शिखर में विराजमान हो गयी।  

कैसे पहुंचे चनाप बुग्याल


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